Tuesday, September 16, 2008

मुमकिन

मुमकिन है कि

तेरे बारे में उम्मीद से

ज्यादा संजीदा हो गया होगा

वह उसका बुरा वक़्त था

तुमसे सच कह दिया

यह उसकी भूल थी

उसने काफी फजीहत से

समय की नब्ज पर

अपनी जिन्दगी को

पत्तों की तरह हवा में

गुम कर दिया

कभी गुलाब के पत्तों पर

चिपके उसके दर्द

चुपके से माथे पर

टपक आये

तुमने एक सिरे से

उसे खाक में मिला दिया

शायद एक संताप को जीने बाला

उसका मन - मिजाज

सिर्फ तुम्हारा ही तो था .....

राहुल, पटना ...............

1 comment:

Amrita Barnwal said...

thanks for wishing navratra..........went on your blog.it' a bit surprisin that u were not willing to be a journalist
being so creative